रुपये में लगातार कमजोरी—ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान परिदृश्य
बुधवार सुबह भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक शुरू होने से ठीक पहले विदेशी मुद्रा बाज़ार से एक महत्वपूर्ण समाचार सामने आया। भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹90 के स्तर को पार कर गया और दिन के अंत में ₹90.21 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निम्न स्तर पर बंद हुआ। पिछले एक वर्ष में ही रुपया ₹85 से गिरकर ₹90 के पार पहुंच गया है।
क्या कभी 1 डॉलर = 1 रुपया था?
सार्वजनिक चर्चा में अक्सर यह धारणा सुनने को मिलती है कि 15 अगस्त 1947 को 1 डॉलर = 1 रुपया था।
भारतीय रिज़र्व बैंक के उपलब्ध अभिलेख इस दावे का खंडन करते हैं। आज़ादी के समय भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर से नहीं, बल्कि ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग से जुड़ा था।
उस समय 1 पाउंड = ₹13.33
और 1 पाउंड = $4.03
इसके आधार पर वास्तविक विनिमय दर लगभग:
➡️ 1 डॉलर ≈ ₹3.30
अर्थात आज़ादी के समय 1 डॉलर कभी भी 1 रुपये के बराबर नहीं था।
रुपये में गिरावट का ऐतिहासिक क्रम
1. वर्ष 1966—पहली बड़ी गिरावट
1960 के दशक में युद्ध (चीन 1962, पाकिस्तान 1965), आर्थिक मंदी, भारी बजट घाटा और 1965-66 का सूखा देश के लिए गंभीर संकट लेकर आए।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने सहायता देने के लिए मुद्रा अवमूल्यन की शर्त रखी।
जून 1966 में रुपये का 57.5% अवमूल्यन किया गया।
विनिमय दर ₹4.76 प्रति डॉलर से गिरकर ₹7.50 प्रति डॉलर हो गई।
2. वर्ष 1991—आर्थिक संकट और उदारीकरण
1991 में भुगतान संतुलन का संकट गहराया। देश के पास सिर्फ तीन सप्ताह का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। आवश्यक आयातों पर भी संकट मंडरा रहा था।
आर्थिक उदारीकरण (LPG सुधार—Liberalisation, Privatisation, Globalisation) की प्रक्रिया शुरू की गई।
इसी अवधि में रुपया ₹21 से गिरकर लगभग ₹26 प्रति डॉलर हो गया।
यह वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास का एक निर्णायक मोड़ माना जाता है।
निष्कर्ष
रुपये की मूल्य में उतार-चढ़ाव देश के आर्थिक, वैश्विक और नीतिगत परिवर्तनों को दर्शाता है।
आज रुपया डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निम्न स्तर पर है, जिसके पीछे वैश्विक आर्थिक दबाव, आयात बिल में वृद्धि, डॉलर की मजबूती और घरेलू आर्थिक चुनौतियाँ प्रमुख कारण हैं।
भारत के लिए यह समय सतर्क और संतुलित वित्तीय प्रबंधन का है, ताकि विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता और विश्वसनीयता बनाए रखी जा सके।