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देवउठनी एकादशी 2025 : भगवान विष्णु के दिव्य जागरण का पावन पर्व

 

चार महीने की योगनिद्रा के उपरांत जब भगवान विष्णु जागृत होते हैं, उस शुभ क्षण को देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है। इस दिन को हरि प्रबोधिनी, देवोत्थान या देव जागरण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या से उठकर पुनः सृष्टि संचालन का कार्य संभालते हैं। अतः यह दिन शुभता, समृद्धि और मंगल कार्यों के आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह तक शयन अवस्था में रहते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश या अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
जब कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु की निद्रा समाप्त होती है, तब ब्रह्मांड में पुनः शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसीलिए इस दिन को देवताओं के जागरण का पर्व कहा गया है।

पूजा-विधि

देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
फिर उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं और पीले फूल, तुलसी दल, धूप, दीप, चंदन तथा नैवेद्य अर्पित करें।
व्रती इस दिन निर्जला या फलाहारी व्रत रखते हैं और दिनभर भक्ति भाव से पूजा करते हैं।

संध्या के समय भगवान विष्णु के जागरण समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसे देव उठाने की परंपरा कहा जाता है। इसमें दीप प्रज्वलित कर, शंख, घंटा और घड़ियाल बजाकर भगवान विष्णु को जगाया जाता है।

इस दिन तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व है। भगवान विष्णु (शालिग्राम रूप में) का विवाह माता तुलसी से संपन्न कराया जाता है। यह विवाह करने से दांपत्य जीवन में प्रेम, सुख और शांति का वास होता है।

रात्रि में दीपदान, भजन-कीर्तन और प्रभु नामस्मरण करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

देवउठनी एकादशी का महत्व

देवउठनी एकादशी को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस दिन व्रत और पूजा करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में समृद्धि तथा शांति आती है।

यह एकादशी व्यक्ति के जीवन में नई ऊर्जा, सकारात्मकता और शुभता का संचार करती है। तुलसी विवाह करवाने से घर में सौभाग्य और समृद्धि का स्थायी वास होता है।

इस प्रकार देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन में शुभता, नवसंकल्प और नई शुरुआत का प्रतीक है।