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दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे: ड्रीम प्रोजेक्ट बना ‘मौत का हाईवे’, 32 महीने में 250 से ज्यादा मौतें

 

देश के सबसे आधुनिक और “जानवर-रहित” बताए गए दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे पर हादसों की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है। उद्घाटन के 32 महीने बाद अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जिससे यह ड्रीम प्रोजेक्ट धीरे-धीरे “मौत का हाईवे” बनता जा रहा है।

दौसा बना हादसों का हॉटस्पॉट

एक्सप्रेसवे पर सबसे ज्यादा हादसे राजस्थान के दौसा जिले में दर्ज किए गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, केवल इस जिले में ही 180 से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं।

जानवरों के कारण बढ़ रहे हादसे

केंद्र सरकार ने इस एक्सप्रेसवे को जानवर-रहित हाइवे बताया था, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। रोजाना एक्सप्रेसवे पर आवारा पशु घूमते दिखाई देते हैं, और अधिकांश हादसे इन्हीं के कारण हो रहे हैं। भारी-भरकम टोल टैक्स देने के बावजूद यात्रियों को सुरक्षित सफर नहीं मिल पा रहा है।

मॉनिटरिंग सिस्टम फेल, रफ्तार पर नहीं लग रही लगाम

एक्सप्रेसवे पर तेज रफ्तार भी हादसों का बड़ा कारण बन चुकी है। जहां अधिकतम गति सीमा 120 किमी/घंटा तय की गई है, वहीं मॉनिटरिंग की कमी के चलते कई वाहन 150 किमी/घंटा या उससे अधिक की रफ्तार से दौड़ रहे हैं। चालकों की झपकी और लापरवाही से कई जानें जा चुकी हैं।

हाई-टेक कैमरे बेअसर

हर 100 मीटर पर लगाए गए थर्मल सीसीटीवी कैमरे ओवरस्पीड वाहनों की पहचान करने और जानकारी एनएचएआई व ट्रैफिक पुलिस तक पहुंचाने के लिए हैं, लेकिन हादसों की रफ्तार बताती है कि ये सिस्टम भी प्रभावी नहीं हो पाए हैं।

टूटी सुरक्षा दीवारें और अनधिकृत रास्ते

कई स्थानों पर एक्सप्रेसवे की सुरक्षा दीवारें टूटी हुई हैं, जबकि कुछ जगहों पर स्थानीय लोगों ने खुद रास्ते बना लिए हैं। इनसे होकर जानवर और दुपहिया वाहन आसानी से हाईवे पर पहुंच जाते हैं।

हाईवे किनारे खुल रहे ढाबे और दुकानें

पिलर नंबर 190 के आसपास हाइवे की सीमा में मिट्टी डालकर ढाबे और दुकानें खोल ली गई हैं। यहां ट्रक खड़े रहते हैं, जबकि यह क्षेत्र नो-पार्किंग जोन घोषित है। कई जगहों पर मिट्टी भरकर गैरकानूनी एक्सेस पॉइंट बना लिए गए हैं, लेकिन एनएचएआई अधिकारी कार्रवाई करने में नाकाम दिख रहे हैं।

प्रशासन पर उठ रहे सवाल

देश की आधुनिक सड़क प्रणाली की मिसाल माने जाने वाला यह प्रोजेक्ट अब लगातार हो रहे हादसों, लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता के कारण सवालों के घेरे में है। एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।