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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर सवाल — क्या भारतीय पुरुष मानसिक रूप से स्वस्थ हैं?

 

नई दिल्ली, 10 अक्तूबर।
आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर जहां दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने की बात हो रही है, वहीं भारत में एक गंभीर प्रश्न उभरता है — क्या हमारे देश के पुरुष मानसिक रूप से स्वस्थ हैं?

भारतीय समाज में बचपन से ही पुरुषों को “मजबूत”, “कमाऊ” और “भावनात्मक रूप से कठोर” बनने की सीख दी जाती है। “पुरुष नहीं रोते” जैसी सामाजिक धारणाएं उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने से रोकती हैं। यही सोच पुरुषों में तनाव, अवसाद और अकेलेपन को बढ़ा रही है।

पुरुषों की मानसिक स्थिति पर चिंता के आंकड़े

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में आत्महत्या करने वालों में लगभग 70 प्रतिशत पुरुष हैं। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि मानसिक दबाव पुरुषों के जीवन में कितना गहराई तक पहुंच चुका है।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी बताते हैं कि आत्महत्या के प्रयासों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है, लेकिन आत्महत्या में जान गंवाने वालों में पुरुष आगे हैं। इसका कारण यह है कि पुरुष क्षणिक आवेश में कठोर कदम उठा लेते हैं, जबकि महिलाएं भावनात्मक सोच के कारण अंतिम कदम तक नहीं पहुंच पातीं।

वैश्विक स्तर पर भी पुरुष आत्महत्या दर चिंताजनक है।
यूके में पुरुषों की आत्महत्या दर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 15.5 है, जबकि महिलाओं में यह 5 है।
ऑस्ट्रेलिया में यह दर महिलाओं से तीन गुना, अमेरिका में 3.5 गुना, और रूस व अर्जेंटीना में चार गुना अधिक है।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता की कमी

पुणे स्थित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सुरभि गोस्वामी का कहना है कि पुरुषों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन खासकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में इन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
वह बताती हैं कि अधिकांश पुरुष थेरेपी या काउंसलिंग लेने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि समाज में अब भी यह धारणा बनी हुई है कि ऐसा करना “कमजोरी” की निशानी है। यह सामाजिक कलंक पुरुषों को मदद लेने से रोकता है।

लक्षणों की पहचान और समय पर इलाज जरूरी

विशेषज्ञों के अनुसार, अकारण नींद न आना, भूख में कमी, चिड़चिड़ापन, अकेलापन या मौत की बातें करना — ये सभी मानसिक परेशानी के शुरुआती संकेत हैं।
ऐसे लक्षण दिखते ही व्यक्ति को मनोचिकित्सक या काउंसलर से संपर्क करना चाहिए।

डॉ. आदर्श त्रिपाठी के अनुसार, “अगर समय रहते संवाद, परामर्श और भावनात्मक सहारा मिल जाए तो 99 प्रतिशत मामलों में सुधार संभव है। दवा और थेरेपी के ज़रिए व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।”

तनावमुक्त जीवन के उपाय

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि नियमित व्यायाम, परिवार व दोस्तों से खुलकर बातचीत, पर्याप्त नींद और संतुलित जीवनशैली तनाव को काफी हद तक कम कर सकती है।
समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि भावनाओं को व्यक्त करना कमजोरी नहीं, बल्कि मानसिक मजबूती का प्रतीक है।

निष्कर्ष

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस और करवाचौथ जैसे अवसर पर जब महिलाएं अपने पति के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं, तब यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है — क्या हमारे पुरुष सच में मानसिक रूप से स्वस्थ हैं?
अब समय आ गया है कि समाज पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी उतनी ही गंभीरता से ध्यान दे, जितना शारीरिक स्वास्थ्य पर दिया जाता है।

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